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दु:ख से दोस्ती जो कर ली
जल गया सुख,भागता आया।
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सुबह रफ्त़ार से यूंँ आई।
रात चुपचाप घर से भागी।
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पत्थरों से हल नहीं होता।
यों मुकम्मल नहीं होता। . दिल जब पत्थर हो जाता है
ताज तोड़ने लग जाता है।
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अजब वक्त है ग़ज़ब सियासत
झगड़े को दंगा करते हैं।
बांँट - बांँट कर भाई-भाई
घर-घर भिखमंँगा करते हैं।
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ज़िन्दगी की तमाम तीरगी। सामने एक जुगनू उम्मीद ।
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ज़िन्दगी से डर गये तुम भी।
रास्ते में ठहर गये तुम भी ।
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यह जीवन इतना भर अपना।
रिश्तों का अनुदान रह गया ।
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उनकी बावस्तगी भी न रही ।
और हम भी अब कहांँ जाते !
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गंगेश गुंजन
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