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कितनी बेतुकी बहसों से घिरा हूँ
मैं भी कैसी सदी का सिरफिरा हूँ।
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भूल जाना बड़ा सवाल रहा
याद आये सो तबीयत न बची।
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आत्मा ख़ाली हो जिसमें
देह तो भारी होगी ही न।
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सच बहुत वज़नी है घर में रक्खें
जेब में ख़ुशामद रखते हैं लोग
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भूल गये सब कुछ तो यादें रखा करो तन्हा सन्नाटे में यौं मत मरा करो।
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दोस्त भी चाहे अब हाँ में हाँ
पाक यारी को तरसते हैं लोग
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चलने लगे तो देखिए हम आ गये कहांँ तक
थक गये तो रास्ते के बीच में नीन्द आ गई।
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भूल जाना बड़ा सवाल रहा
याद आये सो तबीयत न बची
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मुश्ताक़ों के गये ज़माने याद कर
इन्तज़ार अब कौन किसी का करता है।
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गंगेश गुंजन,
#उचितवक्ता डेस्क।
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