🏘️। ग़ज़लनुमा ।
मौत की हिचकी पर अट्टहास
इस ज़माने की बात है ख़ास।
बैठकों के सामांँ सोफों-से
देश का बदला जाए इतिहास।
किस प' करिए और नहींं किस पर
यार,भाई,समाज पर विश्वास।
देर तक टिकती थी तब उम्मीद
अब बिखर जाए पल भर में आस।
सूखता जाए है कुआँ जितना
और उतनी लगती है प्यास।
चला पता तक ना इतनी दूर
गया साथी कब अभी था पास।
बेकसी तो गुंजन उसको भी
मिरी तरह ही आई है रास।
⛺
गंगेश गुंजन,5मई, 2016. #उचितवक्ताडेस्क।
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