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ग़ज़लनुमा
रोज़ -रोज़ मजबूर करेगा
हमको ख़ुद से दूर करेगा
सब्र छोड़ दे साथ हमारा
कुछ तरकीब ज़रूर करेगा।
देखें कबतक बुन कर रेशम
धोखे और मग़रूर करेगा।
छोड़ेगा जा कर सहरा में
इक दिन यही हजू़र करेगा
मरना तो है ही उसको भी
धतकरमी में ज़रूर मरेगा।
*
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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