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रूपक साहित्य
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तो क्या साम्प्रत्तिक हिन्दी
साहित्य भी वर्तमान भारतीय
राजनीति के सत्ता और विपक्ष
का रूपक है ?
जब आदर्श का एक भी
उदाहरण बेदाग़ नहीं माना जाये
तो ऐसे वर्तमान का साहित्य
भी,इसी की फ़सल होगा न।
लगता है कि देश में विद्यमान
राजनीति की तरह साहित्य में भी
अपने प्रकार की इडी-सीबीआइ
इत्यादि ताक में और सक्रिय रहती हैं।
ऐसे में किन्हीं लेखक के 'जन्म
अमृत महोत्सव प्रकरण' का ऐसा
अखिलभारतीय कठविवाद तो
सहज स्वाभाविक ही है।
इस पर समग्र सम्यक विचार भी होगा क्या ? गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क। २७.०७.'२२
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