🌼 ग़ज़लनुमा 🌼
•
ठगी मुहब्बत में है
कुछेक फ़ितरत में है।
•
कम न दु:ख महलों के
बेहद ग़ुरबत में है
•
छीन कर क्या तारीफ़
असल मुरव्वत में है
•
हुस्न रख़्शांँ* है अच्छा
नहीं घूँघट में है।
•
उसे मना कर हारे
मज़ा वुस्लत* में है।
•
झूठ है कितना बुलन्द
सच जो ख़िदमत में है।
••
^ दीप्त,प्रकाशित,
* मिलन,वस्ल
.
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क। २३.०७.'२२.
Sunday, July 24, 2022
ठगी मुहब्बत में है : ग़ज़लनुमा
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment