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जज़्ब करना नहीं आया होता
दुख से कब के न मर गया होता
उसे चिढ़ थी मिरी ख़ुद्दारी से
मैं ही ख़ुद्दार क्यों हुआ होता।
मेरे पसीने पर हो भी उसका
ख़ून पर तो न हक़ हुआ होता
देखिए बदनसीबी कि हमसे
कोई जो बावफ़ा हुआ होता
आँख भर नम होती मान लिया
दिल तो पगला नहीं हुआ होता
किस मुहब्बत को रोता है वो
और बदहाल क्या हुआ होता
इश्क़ की जंग अब सियासत से
मुख्य मंत्री मजनूँ हुआ होता।
🌼 गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
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