⚡⚡ डर ⚡⚡
उन्हें डर है कि कभी भी उनकी हत्या कर दी जाएगी
मगर नियमानुसार सुबह की
सैर,शाम की महफ़िलें करके
अपनी सहूलियत से बेख़ौफ़
बहादुर लगते हुए घर लौटते हैं,
अपने सपने में खो-सो जाते हैं वे
झूठ बोलते हैं कि असुरक्षित हैं
कभी भी उनकी हत्या हो सकती है।
ऐसा क्या है कि सफ़दर जंग,राम
मनोहर लोहिया या एम्स
अस्पतालों में नहीं,ज़्यादातर हत्या
का मृत्यु-भय
सम्भ्रान्त आइ आइ, हैबीटेट और
नगर महानगरों की प्रेस क्लब
टाईप जगहों पर ही फैल कर पूरे
माहौल में पसर जाता है जो
नित्य समय पर ही खोले और
सुरक्षित बन्द किए जाते हैं ?
तो क्या हत्या अब इतना
दुस्साहसी नाटकीय हो गयी है
अथवा क़ाबिल किरदार या कि
नगर-महानगर के राष्ट्रीय रंगमंच
टाईप सभागारों मे निर्देशक इतने
असहाय हो गये हैं?
कैसा बदल गया वक़्त का
मिज़ाज !
लोगों की समझ,सोच,मन-मानस
सब तब्दील हो गये हैं-
शहादतों के क़िस्से भरे महान
देश के दहशतों की दुर्दान्त
पटकथाओं में।
सम्प्रति,
शहीद होने के अवसर ग़ायब हैं
यह किससे कौन पूछे,कहे-
शहादतों के क़िस्से भरे महान् देश में। !🌺! गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
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