Thursday, August 1, 2024

लोकतंत्र का मण्डप !

🛖                  लोकतंत्र का मंडप !
  चीज़ें अपनी जगह हों तो अच्छी लगती हैं 
सबकुछ रखने का सलीक़ा है। 
बर्तन बर्तनों की जगह और अनाज 
अनाजों की तरह रखे हों।
किताबें किताबों की तरह रहें 
डिग्रियांँ भी उसी तरह,जिन्हें हैं।
सम्मान और प्रतीक चिह्न सब अपनी हैसियत और इज़्ज़त से घर में ऊँचे पर कहीं सजे रहें।
वृक्ष वनस्पतियाँ हवाओं की तरह रखी जाने वाली झूमती हुई हरियाली में। 
पक्षी को उनके स्वभाव और इच्छा के ही अनुरूप।
मवेशी को मवेशी के ही योग्य पाला जाना
ठीक होता है। और मनुष्य को बस्तियों घरों में मनुष्य की तरह रखा जाना चाहिए। 
   संसार तभी मुकम्मल घर होता है और व्यवस्थापक घर का रखवाला-
     सद्गृहस्थ कहलाता है।
                            . 
                       गंगेश गुंजन,
                  #उचितवक्ताडेस्क।
                        १०जून,’२४.

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