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सब का ठौर ठिकाना था
कोई इक बेगाना था।
ऋतुएँ भी वे रूठ गयीं
जिनका कुल अफ़साना था।
कैसी मार वक़्त की थी
किसका यह जुर्माना था।
हमने तो समझा न कभी
रिश्ता फ़क़त निभाना था।
किसका था गुनाह वो फिर
सबब वही बतियाना था।
क्यूँकर भला तवक़्को अब
याद करें याराना था।
अकसर गुंजन भूल गये
किसको क्या बतलाना था।
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गंगेश गुंजन
#उवडे.
३१मई,'२४.
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