Sunday, July 28, 2024

ग़ज़लनुमा : यौन हुआ एक उम्र तक सहरा हुआ

❄️
  यौं हुआ एक उम्र भर सहरा हुआ 
  हक़ पे सब सुल्तान का पहरा हुआ।

  जंग अपनी जान पर हम कर गये
  जीत का किसको मगर सेहरा हुआ।

  लग रहा हर सिम्त सब चुपचाप हैं 
  रहनुमा अपना अलग बहरा हुआ।

  देखने से तो लगें सब हैं राह पर  
  मगर रस्ता ख़ुद कहीं ठहरा हुआ।

  कह दिया क्या सुबह ने आकर मुझे
  सामने सब कुछ लगे उजड़ा हुआ।

  यूंँ तो टुकड़े बादलों के मेघ में
  घर का सामाँ सब लगे बिखरा हुआ।

  आप भी तो सोचते कुछ कलमकार
  आपके लफ़्जों पे क्या ख़तरा हुआ।
                         ❄️   
                    गंगेश गुंजन 
        #उचितवक्ताडे.०७.फरवरी,’२४.

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