⛈️
हर रोज़ जिस सवाल से टकरा रहे थे हम
पाकर जवाब दोस्त का सिर थाम के बैठे। °°
टूट रहे पुल !
दिलचस्प है कि पुल का मज़ाक़ वे लोग भी उड़ा रहे हैं जो पुलों पर से पार होकर ही राजनीति से होते हुए कार्पोरेटी एन.जी. ओ.,लेकर साहित्य पत्रकारिता तक में इतने बड़े हुए हैं।
बहुत ज़रूरी नोट कि :
विराट पुल निर्माण-घोटाले की तो भर्त्सना करता हूँ मैं।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडे.
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