💤💥 एहतियात !
एहतियातन अब छड़ी लेकर घूमने निकलता हूंँ लेकिन हर कदम मन में यह अंदेशा रहता है-कुत्ते के भय से आक्रान्त होकर अपनी सुरक्षा में मैं उसे इस भारी छड़ी से आघात ना कर डालूँ जिसका हत्था पीतल और पेंदी लोहे की है।
क्योंकि ऐसा होना ना तो असंभव है और ना अस्वाभाविक।
संचय और संग्रह भी आदमी कहने को तो भावी जीवन की सुरक्षा के एहतियात में ही आरम्भ करता है।
क्या हो जाता है सो सभ्यता में युद्ध और शान्ति का इतिहास ही बतलाता है। एक सामाजिक व्यवस्था को वह कैसे और अहाँ तक ले जाता है ?
एहतियात जरूरी और अच्छा है लेकिन ,
एहतियात के साथ बरतने पर ही।
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गंगेश गुंजन,
#उचितवक्ताडे.
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