Wednesday, July 24, 2024

ग़ज़लनुमा : धुँधलका और बढ़ने दो ज़रा -सा

🌫️
     धुंधलका और  बढ़ने दो  ज़रा-सा
     मज़ा कुछ और बढ़ जाये मज़ा का।

     बहुत संकोच में लगता है दिनकर 
     महिन आँचल ओढ़े  कुहासा  का।

     सर्द से गर्म फिर ठंढी जुदाई
     बढ़ाए दर्द जिस्म-ओ-दिल का ख़ासा

     झाँकना यौं  दुबक  के सूरज का
     लगे बीमार को इक भरोसा-सा।

     एक मासूम हैरत आसमाँ पर
     दोपहर में सूरज है  दीया-सा।
                          °
     गंगेश गुंजन,०७.फ़रवरी,’२४.
         #उचितवक्ताडेस्क।

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