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वक़्त मिला तो गाना गाया
गाली देने में न गंँवाया।
दो-चित् खड़े थे चौराहे पर
जाना तो रस्ता बतलाया।
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दुःख तो हैं कुछ ज़रूर लेकिन
सब दु:ख सब को नहीं सुनाया।
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बेहद कम होते थे वो सुख
सबसे छुप कर घर में गाया।
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मेरा सुख है बस्ती भर का
रखा नहीं भ्रम औ' समझाया।
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मिरी ज़ुबाँ वो क्यूंँ न समझा
ऐन वक़्त पर तो बतलाया।
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कितने युग पर देखा उसको
जी भर उट्ठा रोना आया।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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