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यह जो दुनियादारी है
समझें सब अख़बारी है।
सत्ता सब दिन कहती है
लोकतंत्र सरकारी है
सीधा हक़ मेरा लेकिन
उनकी पहरेदारी है।
हैलिकॉप्टर पर चलता
लोकतंत्र सद्चारी है।
राजमहल गलियारे में
ज़्यादा तो दरबारी है।
आह! इधर अन्जान अवाम
इसकी क़िस्मत न्यारी है
रौशन दिन चुंँधियाते हैं
अंँधियारी लाचारी है।
वो उसको कहता है वो
भ्रष्ट और व्यभिचारी है।
देसी लोकतंत्र में अब
वैश्विक बुद्धि दुलारी है।
सत्ता या है भले विपक्ष
भाषा अजब दुधारी है।
झा मंडल ख़ां शर्मा सिंह
देश'ब महज़ तिवारी है।
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#उचितवक्ताडेस्क। गंगेश गुंजन
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