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यह कैसा डर सता रहा है मुझे
वक़्त किस तरफ़ ले जा रहा है मुझे।
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अभी कल तक यक़ीन था उसपर
आज फिर क्यों न आ रहा है मुझे।
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एक बेख़्वाब आदमी मुझमें
बैठ कर के घुमा रहा है मुझे।
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आँख की रौशनी दिल की धड़कन
हड़प कर ज़िन्दा बता रहा है मुझे।
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काफ़िला बदहवास रूहों का
मेरे दिल में दिखा रहा है मुझे।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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