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उनके घर तो इतना कुछ था
मेरे घर में कितना कुछ था।
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उनके आलीशान महल थे
हमरा कच्चे घर-सा कुछ था।
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वे आँगन दालान छाँह में
अपने सिर दुपहर-सा कुछ था।
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उनका हर आसान काम क्यों
मेरा क्यों मुश्किल सबकुछ था।
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चले, तपे तब आ कर जाना
अपना भी हक़ तो सबकुछ था।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Sunday, January 15, 2023
उसके घर तो कितना कुछ था : ग़ज़लनुमा
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