।🌔 अष्टदल ! 🌔।
हम बोलते रहे मगर समझा न वो ज़ुबाँ
ख़ामोश इक ज़रा हुए औ' सब समझ गया।
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इश्क़ से इश्क़ किसको नहीं है
पता चलता है जब होता है।
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इश्क़ में मुआवज़ेदारी
ग़ज़ब है दौर अजब यारी।
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सफ़र में सामांँ समेट रहा है वो यूंँ कि जैसे बहुत पास हो उसका स्टेशन।
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रोने लगो तो दिल भी रम जाए उसी में।
लेकिन खु़शी भी आएगी आंँसू में नहायी।
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सफ़र में साथ नहीं ख़ास कुछ मेरे असबाब
एक जुदाई है दूसरा मिलने का ख़्वाब।
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दु:खकी गाड़ीपर सुख इक थका हुआ सफ़र
ज़िन्दगी अजब उलटबांँसी है तमाशा घर। •
लालसा हर पल जीने की यूँ न की जाये।
कभी मरने का हौसला भी रक्खा जाये।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क। १०.१०.२०२२
Sunday, October 9, 2022
कुछ अशआर
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