Saturday, October 22, 2022

किसीका ये बहानाथा किसी का: ग़ज़ल नुमा

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 किसी का ये बहाना था किसी का वो बहाना था

 यहांँ उनका न आना था वहांँ उसका न जाना था।

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    इस ग़ज़लनुमा रचना में एक छन्द के लिए दुष्यंत कुमार जी का कृतज्ञ हूँ।

  दूसरे, 

 इस तरह की रिकॉर्डिंग से बच नहीं सकता था क्योंकि मैं जिसओसारे में बैठा हूंँ ठीक मेरे पीछे और दाहिनी ओर गांँव की मुख्य सड़कें हैं...🙏!

                                    प्रस्तुति :

                     #उचितवक्ताडेस्क।

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किसी का ये बहाना था किसी का वो बहाना था                                                  यहाँ उनका न आना था वहाँ उसका न जाना था।

गिले-शिकवे बहुत से रूहके कितने फ़सानो में                                                  किसी का दिल दुखाना था किसी का मुस्कुराना था।

मुरादें कर चुके ख़ुद क़त्ल किस वीरान में जा कर                                                जहाँ प्रेतों के डेरे हैं उन्हीं से सब निभाना था।

फ़क़त अब सब गए माज़ी हुए हम भी तो सब खो कर                                    किसे मंज़िल प' होना औ किसे चलते ही जाना था।

नसीबे ज़िन्दगी सब का जुदा है और अपना ही .....

सफ़र में इश्क़ मिल जाए मुक़द्दर है बड़ा लेकिन                                              उसे पुल से गुज़रना था किसी का थरथराना था।                                              फ़क़त गुज़रे,गए सब,अब खड़ेहैं फ़िक्र में गुंजन                                              बला से है रहा जो भी किसी का हो बहाना था।

        गंगेश गुंजन, २९.०३.'२२.गाम।

              #उचितवक्ताडेस्क।

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