Friday, October 14, 2022

रडार से बाहर

 ⚡          रडार से बाहर            ⚡
  एक दिन अपने ही सुखों की जेल
में बन्द रह कर वे सब सड़ जाएंँगे,
देख लीजिएगा
उनकी खुशियों की आंँधी उन्हें ही
बहाकर सात समुन्दर में डाल
आएगी
  वे सभी खुशियांँ हमारे सुखों को
हड़प कर पैदा की गई हैं
ख़ुद मालिक बन कर अपनी
अलमारियों में जमा की हुई हैँ।
वक्त की भी अपनी तरह से ईडी है
अवसर पर सब का हिसाब बराबर
कर ही देती है।
    कुछ तो बड़ा ज़बर्दस्त है कि पैदा करके दिखाये जा रहे इस तिलिस्म में भयावह फ़रेब है जो
उनके भी रडार से बाहर
अभी पोशीदा है।
ग़नीमत कि फ़ोटो ग्राफ़र है,
निगेटिव को पॉज़िटिव करना
जानता है 
डार्क रूम में मौजूद है जो
किसी घड़ी कर ले सकता है यह 
काम।

और लोगों के साथ,मन में कविता
है जो
आदमी के मन का बैरोमीटर है,
और जो सदा उनके रडार से
बाहर रहती है।
                      *
                गंगेश गुंजन ‌                                     #उचितवक्ताडेस्क।

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