🌀। शुभाशुभ विचार !
प्रकृति बहुत बड़ी है निस्संदेह किन्तु उतनी बड़ी नहीं कि मेरी शुभकामना का अनादर करे। सो अब इस अर्थ में भी स्वास्थ्य-शुभकामना भेजने की भावना
ज़ब्त कर लेता हूँ।
असल में कोरोना काल में अपने एक से अधिक आत्मीय और स्नेही कवि, साहित्यकार के अस्वस्थ होने की सूचना पर मैंने अपनी शुभकामना भेजी और वे तब भी नहीं बचे। उस निराश सिलसिले के आख़िरी अनुभव कवि मंगलेश डबराल जी भी जब मेरी शुभकामना के बावजूद नहीं बचे तब से मैं अपने इस व्यवहार को ही अशुभ मानने लगा। उसके बाद से किसी को स्वास्थ्य के बारे में शुभकामना नहीं भेजता हूँ। स्वाभाविक है कि जब स्वस्थ होकर घर लौट आते हैं तब अपनी खुशी ज़ाहिर करता हूँ।
हाँ मैं यह मानता हूँ कि व्यावहारिकता में (जिसे मैथिली में लौकिकता कहते हैं)मैं बहुत पिछड़ा और पुराना हूँ।यह भी लगता है कि इस प्रसंग का ज़िक्र यहाँ बहुतउपयुक्त नहीं। फिर भी लिख गया हूँ।
* गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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