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इसमें या उस दरिया जाय
किस दरिया जा डूबा जाय।
एक तरफ़ अंधी धतकर्मी
दूजा जिसको मन गरिआय।
सन्तन को भी सत्य कहांँ अब
झूठ-मूठ ही अधिक सुहाय।
एक तो अर्जित भर वैभव
दूजा सबकुछ रहा लुकाय।
अचरज क्या अखबारों में
दानवीर कल कथा छपाय।
सब असनान बाथरूम में
को जा के गंगा में नहाय।
क्या सूझै जब ख़ाली पेट
किस बज़ार में करे उपाय।
🙊🙊
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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