🔥। नफ़रत : ईंधन .
सृष्टि में अकार्यक शायद ही कुछ है यहाँ तक कि आदमी की नफ़रत।
जिस प्रकार मनुष्य की बिष्ठा से भी गैस,ऊर्जा तैयार की जा सकती है और रात भर उससे रौशनी के खम्भे में जलते हुए अंधेरी सड़कों पर प्रकाश फैलाया जा सकता है,जाड़ों मे तापने योग्य जलावन और खाना पकाने में ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है तो इतनी विशाल घृणा को भी वाँछित ऊर्जा में परिवर्तित क्यों नहीं किया जा सकता। सकारात्मक बेहतर बहुत कुछ ? बजाय इसके कि सुबह से शाम,रात तक हम अपनी नफ़रतें व्यर्थ ही यहांँ-वहांँ जुगाली करते और थूकते फिरें ?
बहुत कुछ नहीं भी हो यह फेसबुक किन्तु ख़ामख़्वाह कोई उग़ालदान भी नहीं है।ऐसे में भाषा भी तो प्रभावहीन होती जा रही है। सहलाये या आघात करे अपना काम तुरत करने पर ही भाषा भाषा है।
सिर्फ वर्तमान विद्यमान ढोना ही तो इसका काम नहीं।भविष्य ज़्यादा निर्भर है इसमें।
स्वतंत्रता भी तो हम गूंगी नहीं- भाषा में पाते हैं।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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