Thursday, May 16, 2024

ग़ज़लनुमा : होगा कभी किसी दिन ज़िक्र...

❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️

    होगा कभी किसी दिन ज़िक्र ज़माने का
    पहला नाम आएगा इस दीवाने का।

    अभी किनारा कर ले कोई जो जितना
    कबतक नाम छुपेगा किस परवाने का।

    दुनियादारी सब दरकारों से बाहर
    किसे दर्द याराना वक़्त बिताने का।

    एक जन्म में ही लगता सबकुछ बासी
    कशिश नहीं कुछ कहीं करे जी जाने का।

    उलझे रिश्ते भी कितने सुन्दर थे, अब
    हुनर भूल बैठे हम दोस्त रिझाने का।

    मैंने क्या किसने सोचा होगा कल यह
    जो अंजाम हुआ ख़ुशहाल फ़साने का।

    कल तक था अपने लोगों का,अपना घर
    नयी सियासत में है गाँव सयाने का। 
                          ।📕।                                               गंगेश गुंजन 
                  #उचतवक्ताडेस्क.

No comments:

Post a Comment