Friday, May 24, 2024

ग़ज़लनुमा: हुस्न और इश्क तो बेआब हुए बैठे हैं

हुस्न और इश्क़ तो बेआब हुए बैठे हैं
अब भी शाइर वही आदाब लिए बैठे हैं।

हाथ होने थे नर्म फूल जो पसन्दीदे बदशकल बेरहम तेज़ाब लिए बैठे हैं।

हाय इस मौसम में भी बद्ज़ेह्नी छायी
ज़ौक़-ए-हथियार में रबाब लिए बैठे हैं।

हम भी किस बात पे यूंँ फ़िक्रज़दा हो बैठे
वो ख़ुश बहुत क्या नाया’ब लिये बैठे हैं।

मसअला नाज़ुक है और ये ऐसे ग़ाफ़िल
खौलते वक़्त में क्या ख़्वाब लिए बैठे हैं।

ज़ोर से जिनको आवाज़ ही उठानी थी
वही ज़ुबान तक जनाब सिये बैठे हैं।

बहुत नहीं भी पर वे सब जो अपने हैं
हाथ में शरारे बेताब लिए बैठे हैं।
                       •
           गंगेश गुंजन २०.५.'२४.

            #उचितवक्ताडेस्क।

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