📔। आजकल मुश्किल में प्राण !
फेसबुक पर ऐसा घमासान है जैसे एक परिवार में विरासत और जायदाद को लेकर दो सगे भाइयों के बीच घमासान छिड़ा हो।मैं भी किसी सगे की तरह दुविधा में घिरा हूँ।अब मामला यह है कि देशज वाम और विदेशज वाम के बीच वैचारिक विरासत पर ऐसा अधिकार द्वन्द्व चल रहा है कि मैं भी हतप्रभ हूंँ। फेसबुक पृष्ठ टिप्पणी प्रति टिप्पणियों के बौछार से तर हैं। मेरे लिए तनिक और दुरूह है कारण कि इन ज्ञानियों में मैं थोड़ा कम पढ़ा-लिखा हूंँ। ये सभी परम विद्वान चिंतक,बुद्धिजीवी विचारक हैं। लेकिन फेसबुक साथी तो हूँ। इस समझ के साथ,मगर परेशानी तो मुझे भी बराबर है। किससे कहा जाय ?सो लाचारी मैंने एक तरह से अपनी यह समस्या फेसबुक सभागार में बोल दी है। अब संभव है कि मेरे जैसे के लिए भी कुछ हृदय में सहानुभूति हो,संभव है मेरे लिए और हिक़ारत हो,यह भी संभव कि मेरे लिए धिक्कार हो। मगर जो भी हो मैं अभी यह कह कर यहांँ थोड़ा मुक्त मन होना चाह रहा हूंँ। बस,अपना इतना ही स्वार्थ। मुझे नहीं लगता याद दिलाने की ज़रूरत है कि फ़ेसबुक पर ये ज्ञान मान टिप्पणी-युद्ध किस ज्वलंत मुद्दे पर परवान चढ़ गया है और किस द्वन्द शिखर पर पहुंँचेगा। और वहाँ पहुँच कर क्या करेगा।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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