Tuesday, June 6, 2023

कविता कोना

              कविता कोना

कुछ कवि रैक से किताब चुन लेने कीतरह उतार सकते हैं कविता                        कुछ लाइटर से सिगरेट जला लेने की तरह कविता धूक सकते हैं ।

कुछ सिन्हा लाइब्रेरी के बाहर जमा देने   वाली सर्द रात में सीट पर सिकुड़े बैठे  पुस्तकालय बन्द होने की ताक में        ऊंँघते-चौंकते राह देखते रिक्शा वाले की बची हुई इस उम्मीद में,किसी पढ़ाकू बाबू सवारी की प्रतीक्षा में भी।                  किसी लॉज के बन्द कमरे में                  देर तक रखी रोटी पर ठंढा होते हुए नमक से निकाल सकते हैं- मुँह और हाथ के बीच थकान की दूरी को कविता समान।

  इस समय सब कुछ में अजब गड्ड मड्ड हो    रहा है सबकुछ !

  रन बटोरने की तरह कर रहे हैं कुछ कवि    कविता और कतिपय बुद्धिमान गण

  फुटबॉल के गोल दागने की तरह रिकॉर्ड तोड़ आलोचना।

  माया सुन्दरी अदृश्य राजनीति एक ही स्टेडियम में एक साथ क्रिकेट,कुश्ती,    हॉकी-फुटबॉल के खेल रही है और गँवई चरगोधियांँ कोटपीस- ताश।                झाँव-झाँव मचा हुआ है टीवी चैनेलों पर धुर्झार !                                           सभी कह रहे हैं सभी को जो हो              हो जाएगा आर-पार अबके बार।         बाज़ार सेंसेक्स पर टुकटुकी लगाये       दामी से दामी गुटका फाँक रहा है।       इन्हीं के बीच इधर से उधर

 यहांँ से वहांँ चूहादानी में फँसे चूहे की तरह रेंगती हुई कविता निकाल रहे हैं कुछ।किंकर्तव्यविमूढ़ों की आबादी दिनानुदिन महँगाई की तरह पसर रही है।                  बहुत से कवि,                                   इनसे भी बेहतर कविता बरत रहे हैं और तमाम पोस्टरों से भर रहे हैं                  आम जन का असंतोष, विस्फोटी आक्रोश  जन्तर मन्तर के वृक्ष ओ दीवार में।

कुछ सुजान तो जन्तर मन्तर की कविता  उठा कर फ़्लैट रजिस्ट्री कराने की तरह  साधते हुए प्रेस क्लबों में सुलगा सकते हैं नितान्त वक़्ती कविता -

 देर रात तक ढाल सकते हैं आज की                  जीवन-कला !

                 गंगेश गुंजन                                       #उचितवक्ताडेस्क।

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