ग़ज़लनुमा
वो ही सब दुहराना था
महज़ इसलिए आना था।
उन ही गुलदस्तों में फिर
बासी फूल सजाना था।
हाँफ रहा था क़िस्सा एक
इक आग़ाज़ फ़साना था।
क्या जादू था वक़्ते सफ़र
किसकी अता ख़ज़ाना था।
था क़ुसूर किसका,किस पर
आयद सब जुर्माना था।
उस दिन झूठ थका,हारा
उसका ख़त्म बहाना था।
राजनीति क्यूँकर लाजिम
जनता को फुसलाना था।
एजेंडा - एजेंडा सब
बाक़ी अब भरमाना था।
उड़ती रेतों में वो कौन
फूलों का दीवाना था।
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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