कल की अब सोचेंगे कल
हो सियासत में भले हलचल।
सब की साँसें अटकी हैं
नेता कौन आये अव्वल।
कुर्सी कौन सम्भाले है
कौन करेगा इसे दख़ल।
बेचारी जनता को आस
सबदल की जो चली पहल।
घी से हैं बाज़ार भरे
बँटते हैं सस्ते कंबल।
आर पार का हल्ला है
रखियो साथी क़दम सम्भल।
फुनगी पर बैठे चिंतक
ठूँठ पेड़ में गिनते फल।
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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