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जिनकी भी तैयारी है अबकी हमरी बारी है।
बहुत बने है चतुर सुजान होनी हार क़रारी है।
सच कहिए तो सब अपना ख़ुद मज़दूर दिहारी है।
देशी मसले लगते दो महन्थ और बुख़ारी है।
ऊँचा ही सुनता है न्याय पच्चीस,तीस हज़ारी है।
इतना ऊँचा गया मगर जनता की हक़मारी है।
सकते में दक्षिण,पूरब आगे एक बिहारी है ।
सोती नहीं कोई बस्ती रतजग्गा बीमारी है।
दो धारी हों वार भले हमरी भी तैयारी है।
सकते में दक्षिण,पूरब आगे एक बिहारी है ।
कौन वाम है दक्षिण कौन दुविधा ये दोधारी है।
सोच समझ का जंगल मुल्क कोमल प्राण शिकारी है।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क। २१ मई,२०२३.
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