कुछ लोग कहते-कहते मर जाते हैं।
कुछ लोग सुनते-सुनते मर जाते हैं।
कुछ लोग करते-करते मर जाते हैं।
कुछ लोग रहते-रहते मर जाते हैं।
कुछ लोग सहते-सहते मर जाते हैं।
ये सब समाज और मनुष्यमात्र की जीवन- दशा बदलने की नीयत और विचार से संकल्प स्वर में भाषा-साहित्यों में ही अधिक होते हैं।
आज भी दिन भर कुछ लोग पढ़ते-पढ़ते सो जाएंँगे । अपने-अपने इतिहास का गह्वर हो जाएँगे।
५ मई,२०२३. गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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