🌈🌿
ख़्वाबोंका सब शीशमहल खंडहर
होता है
जो ज़मीन पर हो वो ही घर,घर
होता है।
वो क्या बोलेगा जो ख़ुदगर्ज़ी का
मारा
हरे भरे गाँव कर क़त्ल,शहर
होता है।
लाख खड़े कर लें मीनार-ओ-
ताजमहल
रहना तो हर इक का एक उमर
भर होता है।
सपने को मीठा लगता है खारा
पानी
जितनी बहें आँख उतना सरवर
होता है।
अजब नहीं लोगों को भायें सुन्दर
सड़कें
ख़ास शख़्सको पर्वत और शिखर
लगता है।
क़दम नहीं उठ पाते क्यों उन सब
के आगे
बढ़ने में लोगों को कितना डर
लगता है।
.
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
No comments:
Post a Comment