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वक़्त और हालात से घबरा गयेतो जी लिए लोग के व्यवहार से उकता गयेतो जी लिए।
बदलना आदत है क़ुदरत की तो बदलेगी अभी
तुम भी जो उसकी तरह बदले नहीं तो जी लिए।
कौन है जो ये समझता है नहीं ख़ुद को ख़ुदा
रह गये इन्सान यूँ ही उम्र भर तो जी लिए।
काट दी जाए ज़ुबांँ और लाज़िमी हो बोलना
वक़्त पर चीख़े नहीं तब जिस्म से तो जी लिए।
रूठना फिर मनाना फिर रूठ जाना यार का
भूल से भी जो लगाया दिल से फिर तो जी लिए।
बहुत कुछ बदले हुए इस दौर में ज़ेह्न-ओ ज़बान
इन्क़लाबी तर्बियत* बदली नहीं तो जी लिए।
तुम नहीं समझे सियासी दौर ये तो सर्वनाश
जी चुके बदहाल बेबस लोग थे,तो जी लिए। ••
*शिक्षा,सुधार,प्रशिक्षण,ट्रेनिंग।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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