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कहते-कहते थक जाता है झुठ्ठा भी
सुनते-सुनते पक जाता है सच्चा भी।
अथक क़दम रहने वाले जो हुए हौसले
उनके आगे रुक जाता है रस्ता भी।
जिन आँखों का सपना बासी हो न कभी
उनकी फ़ितरत नाकामिए विवशता भी।
रिश्ते हैं तो होंगे भी जब-तब मायूस
लेकिन कर क़ायम रख मधुर सरसता भी।
हिम्मत हो जज़्बा जुनूँ मक़्सद भी हो
एक आज़ाद ज़ेह्न समाजी दस्ता* भी।
*फ़ौज की टुकड़ी,गारद।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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