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चन्द दू पँतियाँ
१.
थके हुए शब्दों को कुछ विश्राम
चाहिए
चूर-चूर है जिस्म ज़रा आराम
चाहिए।
२.
तोड़-फोड़ कर बड़े टावरों को
खुश तो हैं इतने वो
जैसे ख़त्म हुऐ जाते हों पूँजी,
भ्रष्ट कारनामे
३.
चलेगी और बहुत दिन न अब
यह मनमानी
अब और न आगे बढ़ेगी यह
मनहूस कहानी।
४.
बहुत कुछ अब नहीं है ज़िन्दगी
में,है एहसास
मिले तो 'कैसे हो' पूछ लेना तो
बचा है।
५.
मुझसे शिकायत है उन्हें वो
शौक़ से रखें
है वक़्त भी कम साथ वो दिल
भी कहाँ रहा।
६.
झुक कर के सरे राह एहतराम
कर गया
इक अजनबी क्यूँ कर मुझे
सलाम कर गया।
७.
किस मुहब्बत की बात करते हो
वो जो शादी के मण्डप तक पहुंँची।
८.
मत रहने दे अनबोला
बेज़ुबान से बोला कर।
९.
संगम है प्रयाग का इश्क़
धर्मों में मत घोला कर।
१०.
हम भी ख़ुश थे सोच-सोच कर
दुनिया कितनी प्यारी है
समाचार सब पढ़ और सुन कर
जाना कि अख़बारी है।
११.
कुछ तो थी साहिल की ही
मजबूरी
और कुछ दूर थी कश्ती भी
दरिया में।
१२.
निभाते हैं वफ़ा हम अपनी ऐसे
निभाए पुरखों ने मज़हब जैसे।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Friday, September 2, 2022
चन्द दू पँतियांँ
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