Thursday, September 15, 2022

ग़ज़लनुमा : ऐसा नहीं कि हममें कुछ दाग़ नहीं है

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ऐसा नहीं कि हम में कुछ दाग़ नहीं है
ये भी नहीं मगर कोई आग नहीं है।

करने से बहुत कमतर करके भी कौंधें
कुछ हुनरमन्द जैसा हाँ,भाग नहीं ‌है।

जैसा भी है गाँव उस प' है बहुत गुमान
होता हो जहाँ हो,मिरा प्रयाग यहीं है।

खु़द लोक के रचे हैं गायें भी उसे ही
ये लोकगान है पकिया राग नहीं है।

  गढ़ते रहें बैठे हुए नव परिभाषाएँ
विप्लव कि प्रेम अपना अभिराग* वहीं है।

सूखी हुई सियासत के सुनो मुरीदो
सम्मुख खड़ा बन्दा उसका भाग नहीं है।
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*अतिशय प्रेम।

                     🛖🛖
                  गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।


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