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सोच समझ कर लिक्खा कर
दिल से दिल तक बोला कर।
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लफ़्ज़ों को ख़ंज़र न बना
लहू न' काग़ज़ उजला कर।
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रस्ते और हैं इफ़रात
काँटों पर क्यूंँ टहला कर।
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जो भी कर रूहानी कर
वफ़ा यार भी पहला कर।
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तुल जा ख़ुद यही बेहतर
रिश्ते ना यूंँ तोला कर।
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घर,मन्दिर मस्जिद गुम्बद
ऊँचा तनिक मझोला कर।
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मौसम अपने हाथ में धर
जी को उड़न खटोला कर।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क। ३० अगस्त,२०२२.
Tuesday, August 30, 2022
सोच समझकर लिक्खा कर : ग़ज़लनुमा
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