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इससे पहले कि खु़शामद लगे
लगने यारी
बदल लेना चाहिए लहजा और
वफ़ादारी।
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ज़रा से शौक़ में ज़्यादा मगर
सदाक़त में
हम भी मारे गये फ़ितरते
वफ़ादारी में।
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उतने बेचारे भी नहीं हैं जितना
उन्हें समझते हो
किसी सुबह उठ्ठेंगे लेंगे अंगड़ाई
इन्क़्लाब होगा।
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गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
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