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यह तो कुछ भी नहीं उस दिन
देखना रुतवा मेरा
उठाने आएगा ख़ुद आसमां
मुझको हथेली पर।
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मुल्क को मिल्कियत समझें कुछ
सियासी लोग अपनी।
बाख़बर हुशियार रहिएगा शरीक़े
ग़ालिबों से। .
लोग अपना ही बदल लेते हैं
उन्वाने किताब
मुल्क में अब नहीं बिकने लगे हैं
उनकेे रिसाले
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बाज़ार में आया नहीं है कोई नया
ब्राण्ड
नया एक दिल है मेरा मैं इसे
बेचूंँगा नहीं।
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चल तो जाती है किसी तरह से
रोटी और दाल
मगर रिश्ते मेरी क्रय-शक्ति के
बाहर हो गये हैं।
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हमारे दौर में सबसे बड़ा ईमान
ग़ायब है।
बची मोटर में आदमी की पेट्रोल
नहीं है।
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कोई दुखड़ा लगे सुनाने तो
इज़्ज़त से सुनना
मत करना नाराज़ दुःख ख़ुद्दार
बहुत होता है।
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हाथ में लिफ़ाफ़ा देखा नहीं कि
दोस्त कुछ अपने
झपट के हाथ से ख़त भाग जाते
थे कहीं, कैंटीन।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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