🛖
ग़ज़लनुमा! एक पुरानी
क़िस्मत क़िस्मत रो-रो कर के
जीना भी क्या जीना है।
ज़हर को आशीर्वाद समझ कर
पीना भी क्या पीना है।
जो कहते हैं पूर्व जनम के कर्मों
का फल भोगते तुम
दोस्त समझ लो उन्होंने ही
सबकुछ तुमसे छीना है।
मौसम की रंगीन मिज़ाजी कुछ
दीवारों में है रखेल
उसे मुक्त करने का यारो यही तो
सही महीना है।
इनके सुनहले जाल को समझो
मंदिर-मस्जिद-गिरजा घर
इनके धर्म अँधेरे में अब ख़ूब
सम्भल के चलना है।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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