🌈 सर्वोच्चता-ग्रंथि !
समाज के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को अपना होना कितना श्रेष्ठ होना चाहिए ? जबतक मनुष्य का यह मन मिज़ाज नहीं पहचाना जाता तब तक कोई भी समाज-व्यवस्था प्रति द्वन्द्विता मुक्त अतः निष्पक्ष नहीं बन सकती है। चाहे कोई भी अंश या पूर्ण पक्षधर सिद्धांत और व्यवहार हो,किसी चेतन जाग्रत मानव समाज में मुकम्मल और सर्वमान्य हो ही नहीं सकता। हरेक प्रत्यक्ष या परोक्ष संघर्ष यहीं पर है।
सर्वश्रेष्ठता की अदम्य चाहत ही इच्छित मानवता के विकासकी सीमा है। और सो परम्परा की भाषा में बड़ी मायावी है।
📓 गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Wednesday, March 27, 2024
सर्वोच्चता -ग्रन्थि !
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