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सुबह-सी आयी है मुश्किल शाम जैसी चल गई
कुल मिलाकर ज़िन्दगी की रात यूँ
ही ढल गई।
चाँदनी और अमावस-से फ़ैसले
जिसने लिए
कुल मिलाकर सबको उसकी
आरज़ू ही छल गई।
बहुत छोटा ही सा घर था मगर
उसमें देखिए
कुल मिलाकर आठ दशकों
ज़िन्दगानी पल गई।
और दिन होता तो हम भी भूल ही
जाते मगर
कुल मिलाकर आज की तन्हाई
लेकिन खल गई।
हौसले तो पस्त थे किसने भी यह
सोचा था कि
कुल मिलाकर साँस आख़िर जा
रही समहल गई।
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#उचितवक्ताडेस्क।
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