°° होने में
होना ही पर्याप्त नहीं होता। राजनेता और विचारक ही नहीं,कितने कवि तक को जाग्रत और क्रान्तदर्शी लगने के लिए दिखते भी रहना पड़ता है- अनवरत।सामाजिक चेतना और परिवर्तन कामी मन मिज़ाज और जुझारूपन के कुछेक आक्रोश उद्घोष के शब्दों का बार-बार प्रयोग करते रहना पड़ता है।मंचों पर दुहरानी पड़ती हैं - परिवर्तन के लिए सामाजिक प्रतिबद्धताएँ। बाँधकर दिखानी ही पड़ती हैं-सामूहिक मुठ्ठियाँ लाल-लाल आँखें। 🔥
गंगेश गुंजन। #उचितवक्ताडेस्क।
Thursday, March 21, 2024
होने में
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