📔
गिना चुना अफ़साना लिख
जो भी लिख पैमाना लिख।
हो जिसका लिखना खेला
तू साहित्य निभाना लिख।
शम्मा पर कहने में शे-ए-र
पागल इक परवाना दिख।
जीवन की लिख रहा किताब
सफ़ा सफ़ा वीराना लिख।
भटकी हुई सियासत को
जन-मन से बेगाना लिख।
सेठों को लिख मस्ताना
शायर को दीवाना लिख।
लोगों ने ठुकराया है
तू लेकिन अपनाना लिख।
यह धुंधला मैला तो है
कल का समय सुहाना लिख।
गु़रबत लिख हथियारे जंग
कल को नया ज़माना लिख। । 📔। गंगेश गुंजन रचना: १२/१३मार्च,२०२४.
#उचितवक्ताडेस्क।
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