Tuesday, November 22, 2022

सत्ता का पंचरंगी : विविध भारती

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  ||  सत्ता का पंचरंगी विविध भारती  ||

  यह भ्रम है कि सत्ता का खेल सिर्फ़ राजनीतिक राजकाज की सत्ता व्यवस्था अर्थात् सरकारें ही खेलती हैं। नहीं।
अपवाद छोड़ कर सत्ता सामर्थ्य का खेल वे तमाम संगठन और समाज साँस्कृतिक संस्थासँ भी अपनी शक्ति भर उसी तरह करती हैं। वे ग़ैर सरकारी कला-साहित्य
के संस्थान भी अपनी-अपनी सत्ता का मज़बूत केन्द्र हैं तथा अपने हित में अपनी पसन्द और निर्णय का खुल कर उपयोग करते रहते हैं जो सम्बन्धित अध्यक्षों-सचिव-
महासचिवों के क्रियाकलापों में प्रगट होते रहते हैं।
  इन संस्थाओं से उपकृत होने की प्रत्याशा में भी लोग क़तारों में खड़े हैं। प्रौढ़,पुरानी पीढ़ी को तो छोड़ें तेज़ तर्रार नयी प्रतिभा की पीढ़ी के युवा भी 'जी,सर' की मुद्रा में खड़े
रहते हैं।
   यह विडंबना बहुत नयी भी नहीं लेकिन इसका ऐसा उग्र संगठनात्मक उतावलापन नया है। उससे भी चिन्ताजनक यह है कि
यह प्रवृत्ति कोई भाषा या क्षेत्र विशेष भर की नहीं सार्वदेशिक प्रतीत हो रही है।
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                   गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क।                                     २३.११.'२२.

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