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हर मुसीबतकी घड़ी में होगा उसका आसरा
अब कहाँ मानेगा वो ये था उसीका फैसला।
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लौट कर तूफ़ाँ से लड़ कर बहुत ख़ुश था कारवाँ
क्या ख़बर थी बाद में बे इन्तिहा था रास्ता।
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अब तो सब क़िस्से हुए रिश्तों से लेकर सरज़मीं
माज़ीए मायूस तेरा सिलसिला बाज़ाप्ता।
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मौत से है रंज हमको भूल से मत सोचिये
हर जनम उससे है मेरा दोस्ताना राब्ता।
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मखमली आग़ोश में जो लेट कर सोने में है
मज़ा तो बस है उसी को जिसको है इसका पता।
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हर जुदाई इन्तिहाई हो रही जैसे रिवाज
देखते हैं अपने ही लोगों में जैसा फासला
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मौज के जिस हादसे ने डुबो दीं वे कश्तियाँ
मुकम्मल रौशन जहाँ में सियासी था मामला
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मुसीबत थी पाँव की जूती मेरी पूरे सफ़र
रात भर था साथ अपने हौसले का काफ़िला
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जब तलक बदले नहीं अब सल्तनत का ढब मिज़ाज
आम जन के दु:ख का आता रहेगा ज़लज़ला।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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