ग़ज़लनुमा
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दिलों का डाक्टर है
हुनर का मास्टर है।
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बोलने में लिखे में
अदब का नामवर है।
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सियासत को अदब के
कौन गुस्से का डर है।
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जहाँ वो है न होता
वजह ये ही अगर है।
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उसे क्यों ख़ौफ होगा
जिसे रोटी न घर है।
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टूटता भी दिखे है
हौसले में मगर है।
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ठंड ठिठुरा रही जो
रात क्या,क्या सहर है।
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आदमी से भी मुश्किल
य' सूरज का सफ़र है।
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प्रेम को पूछे कौन
नफ़रतें भर नगर है।
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