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डरा हुआ सच तो फ़रार है
झूठ हर जगह बरक़रार है।
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लिपटा है अवसर का बिस्तर
दे धोखा कब से तैयार है।
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जन साधारण को समझाने
तर्क पास में बेशुमार है।
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बॉल्कनी के गमले सूखे
पॉर्कों में पसरी बहार है।
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मस्तमना हैं सोच-सोच कर
विरोधियों का बंँटाढार है।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Friday, December 16, 2022
डरा हुआ सच तो फ़रार है... ग़ज़लनुमा
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