•• ग़ज़ल नुमा ••
मेरे हाथों में दे के क़लम मुझे भेजा है
हरेक सिम्त जहाँ सब के हाथ नेजा है।
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बहुत महीन मुहावरे का करता है प्रयोग
कहे ग़रीब और चूहे का मिरा कलेजा है।
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तहस नहस किये दे रहा है इक चुटकी में
बाग़ सदियों में हमने ये जो सहेजा है।
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मरीज़ ढो-ढो कर थकते रहे थे जो काँधे
आज अपनी हसरतों का जो जनाज़ा है।
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अजब तड़प है आग-सी लगी है सीने में
और ये सामने जम्हूरियत का तक़ाज़ा है ।
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गंगेश गुंजन,
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